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लेखनी प्रतियोगिता -14-Jan-2022

अल्फाजों का कारोबार 
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वैसे तो आज से हीं मैं,
यह कारोबार छोडने वाली थी ।
उमदा चलता है ये व्यापार,
फिर भी मैं अपनी राह मोड़ने वाली थी ।
आशुफ्ता अस्बाब से होके परे,
इख्लास सी गली को छोडने वाली थी ।
हुआ कुछ यूं कि,
फिर से आब-ए-चश्म आंखो मे भर गए ।
इतिहाद की तरह कुछ हादसे फिर से उभर गए ।
अफ़सुरदॉ से मन खामोशीयों में हलचल से कर गए । 
और फिर तब करते भी तो क्या करते जनाब,
मेरे अलफाज फिर से पन्नो पे हीं उतर गए !!

                          - ऋताम्भरा   
                      [मुजफ्फरपुर, बिहार]

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6 Comments

Abhinav ji

16-Jan-2022 08:24 AM

Nice

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Shrishti pandey

15-Jan-2022 11:15 PM

Very nice

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Seema Priyadarshini sahay

15-Jan-2022 03:36 PM

सुंदर रचना

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